तो आ जाएँ नीचे
आप ज़मीन पर हैं
तो आइये ऊँचाई पर
पहाड़ की सुगंध
क्या साथ आई है आपके ?
या आप उठा लाए हैं पहाड़ !
ज़मीन की घास पर न रखें पहाड़
उसे रहने दें यूँ ही
घास मिट्टी की उजास है
और पहाड़ नदियों का पिता।
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अनीता वर्मा की कविता साभार.
8 comments:
badhiya prastuti . dhanyawad..
बहुत सुंदर
BAHOT HI KHUBSURAT KAVITA JO JEEVAN KO Marg darshit karti hui..
http://www.sahityashilpi.com/2009/06/blog-post_1136.html
arsh
बहुत बढिया!!
बहुत सुन्दर कह सकते हैँ
धन्यवाद डॉ.चन्द्रकुमार जैन..अच्छी अच्छी कविताएं ला रहे हो भाई.
जैन साहेब बहुत उम्दा रचना पढ़वाई आपने...बहुत बहुत आभार आपका...
नीरज
सुन्दर!
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