Tuesday, July 21, 2009

वो बेखयाल मुसाफ़िर...!

मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारों
के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों

वो बेखयाल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारों
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों

मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी
के अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारों

तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था
मैं उसके घर का पता किसको पूछता यारों
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वसीम बरेलवी की ग़ज़ल साभार.

6 comments:

ओम आर्य said...

अतिसुन्दर.......बधाई .......आपके कलम को सलाम

Udan Tashtari said...

वो बेखयाल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारों
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों

-बहुत सुन्दर भाई!!

Anil Pusadkar said...

बहुत बढिया डाक्साब्।

mehek said...

मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी
के अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारों
waah bahut khub

मुकेश कुमार तिवारी said...

सर,

तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था
मैं उसके घर का पता किसको पूछता यारों

बहुत ही अच्छा शे’र कहा है।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

रंजना said...

Padha to kanon me Jagjeet Sahab aur Lata di ke madhur sawar swatah hi baj uthe....
aabhar.