जो जैसा सोचते करते हैं वैसा कुछ नहीं होता
अगर होता भी है तो उनके हक़ में कुछ नहीं होता
हैं दौलत के भंवर में डूबने तैयार सब लेकिन
कभी नदी नहीं होती कभी मौका नहीं होता
न गलती है न धोखा है सरासर ये हिमाकत है
यों सब कुछ जानकर हठ पालना धोखा नहीं होता
बढ़ाती जा रही है पैठ नफरत दिलों तक लेकिन
मुश्किल ये है खुल के सभी का मिलना नहीं होता
दिखाएँगे कहाँ तक रोशनी ये चाँद-सूरज भी
अगर इंसान में ही नूर ख़ुद पैदा नहीं होता
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श्री महेंद्र सिंह की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत
5 comments:
अगर इंसान में ही नूर ख़ुद पैदा नहीं ,,,,
bahut sahee baat
न गलती है न धोखा है सरासर ये हिमाकत है
यों सब कुछ जानकर हठ पालना धोखा नहीं होता
बिलकुल सही लिखा आप ने , बहुत सुंदर लगी आप की कविता.
धन्यवाद
वाह ...बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल....
प्रेषित करने हेतु आभार...
good
दिखाएँगे कहाँ तक रोशनी ये चाँद-सूरज भी
अगर इंसान में ही नूर ख़ुद पैदा नहीं होता
बहुत सही ...शुभकामनायें ..!!
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