Monday, October 5, 2009

काम की हद तक हमारा काम है...!

कामयाबी के नहीं हम जिम्मेदार
काम की हद तक हमारा काम है
ज़ब्र उस मुख्तार पर क्यों कर करें
अर्ज़ कर देना हमारा काम है
हुस्ने सूरत को नहीं कहते हैं हुस्न
हुस्न तो हुस्ने अमल का नाम है
रह सके किस तरह अमजद मुतमईन
ज़िंदगी खौफ़े खुदा का नाम है
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अमजद हैदराबादी की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत.

5 comments:

राज भाटिय़ा said...

आज तो आप को इस गजल का भाव भी समझाना होगा, बिना समझे वाह वाह केसे कर दुं, ओर आप की कविता,गजले बहुत खास माने रखती है.
धन्यवाद

शरद कोकास said...

अमज़द साहब का पहला शेर बिलकुल गीता के वाक्य की तरह लगा । धन्यवाद चन्द्रकुमार जी ।

रंजना said...

प्रेरणादायी सुन्दर ग़ज़ल प्रेषित करने के लिए बहुत बहुत आभार.

Nityanand Gayen said...

bahut badiya hai. kripya mere blog par jayein or apni tippani likhe www.merisamvedana.blogspot.com
dhanyavad.

nityanand

Nityanand Gayen said...

bahut sundar

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