
मूक बज्मों में ग़ज़ल की बात मत कर
अरसे के बाद जिनके लिए निकलता है सूरज
उन सियाह तकदीरों की सुबह को रात मत कर
जो शहर में बमुश्किल दिखाई दिया करते हैं
ऐसे लोगों से सरे राह मुलाक़ात मत कर
जिन्होंने एक भी वादा निभा कर न दिखाया हो
उन छतों पर आग्रहों की बरसात मत कर
ये समझ तू कातिलों की महफ़िल में है
ऐसी जगह बंदीगृहों की बात मत कर
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सुदर्शन शंगारी की ग़ज़ल साभार प्रस्तुत
5 comments:
अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने ....
मुस्कुराना चाहते है तो यहाँ आये :-
(क्या आपने भी कभी ऐसा प्रेमपत्र लिखा है ..)
(क्या आप के कंप्यूटर में भी ये खराबी है .... )
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com
बहुत सुंदर गजल जी धन्यवाद
बहुत दिनों बाद आपकी ब्लॉग सक्रियता एवं भाई सुदर्शन शंगारी की गज़ल पढ़कर अच्छा लगा.
... bahut sundar ... behatreen !!!
uffff..shudarshan jee ne bahut hi umda ghazal kahi hai.
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