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हिंदी की वह विरल विभूति हैं जिनकी वाणी
ग्राम्य-कुटीर से लेकर राष्ट्रपति भवन तक गूंजी
उन्हें सन 1939 में, हिंदी में लिखित
शोध प्रबंध 'तुलसी दर्शन' पर
डी.लिट की उपाधि से अलंकृत किया गया था।
बहरहाल....पढ़िए आचार्य प्रवर के चंद प्रेरक मुक्तक...
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एक
माना कि विषमताएँ दुनिया को घेरे हैं
उस घेरे को भी घेर धैर्य से बढ़े चलो
उल्लास भरा है तो मंज़िल तय ही होगी
मंज़िल को भी सोपान बनाकर बढ़े चलो
दो
निश्चय समझो जो कभी तुम्हारा बाधक था
वह देख तुम्हारा तेज स्वयं साधक होगा
तुम अपने आदर्शों के आराधक हो लो
पथ स्वयं तुम्हारे पथ का आराधक होगा
तीन
किसको न बुढ़ापा आता है इस जीवन में
पर वह क्या, जिसकी यौवन में झुक जाये कमर ?
जो होना है वह होगा, तब होगा लेकिन
पहले ही ध्वस्त हुए क्यों अनहोने भय पर ?
चार
अकबर महान हो यदि अपने ऐश्वर्यों में
शंकराचार्य ने यदि दिमाग आला पाया
तो मैं भी तो हूँ शहंशाह अपने दिल का
मैं क्यों मानूँ मैं छोटा ही बनकर आया ?
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5 comments:
प्रेरक ,सुन्दर मुक्तक...
बहुत सुंदर मुक्तक जी धन्यवाद
सचमुच प्रेरणादायी ....आभार पढवाने का ...
बहुत अच्छे मुक्तक हैं यह ।
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