Saturday, March 12, 2011

अगले जनम में...!


अगले जनम में
तुम बन जाना ख़ुशी
मैं बनूंगा दुःख
तब हरेक होंठ पर
लाल फूल सा खिल जाना तुम
मैं भी बहूंगा
हरेह आँख से
झरने सा

अगले जनम में
तुम बन जाना मिसरी
मैं बनूंगा नमक
तब तुम घुलकर मीठा करना
दूध का जीवन
मैं भी करता रहूँगा दाल को खारा

अगले जनम में
तुम बन जाना समुद्र
मैं बनूंगा चाँद
तब तुम अपने बालक ज्वार को
तट पर गोद लिए आना
मैं भी टहलाने लाऊंगा
अपनी बिटिया चांदनी को

अगले जमन में
तुम बन जाना कागज़
मैं बनूंगा कलम
तब तुम धरती सा उपजाऊ बन जाना
मैं भी हल की तरह चलूंगा
तब ज़रूर लहलहायेगी कविता की फसल।
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रंजीत भट्टाचार्य की रचना साभार प्रस्तुत.


3 comments:

Atul Shrivastava said...

बहुत खूब।
अगले जनम में....।
बेहतरीन कल्‍पना।

रंजना said...

वाह कितनी कोमल,कितनी मोहक कल्पना,कामना..
है....

बहुत ही सुन्दर रचना है...

पढवाने के लिए आभार..

Madhur said...

मैं भी बहूँगा हरेक आँख से झरने सा , क्या बात है , इस खूबसूरत कल्पना की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद |