
भला लाचार क्या होना किसी लाचार के आगे
मुहब्बत करने वाले जाने क्या तरकीब करते हैं
वगरना लोग तो बुझ जाते हैं इनकार के आगे
बिकाऊ कर दिया दुनिया ने जिसको होशियारी से
बिछी जाती है ये दुनिया उसी बाज़ार के आगे
तुम्हें मौजें बतायेंगी किसी दिन राज़ दरिया का
कई मझधार होते हैं वहां मझधार के आगे
डराता है किसी मंज़िल पे आकर ये तजस्सुस भी
न जाने कौन सा मंज़र हो किस दीवार के आगे
मगर ये बात समझाएं तो समझाएं किसे 'दानिश'
कोई भी शय बड़ी होती नहीं किरदार के आगे
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श्री मदन मोहन 'दानिश' की ग़ज़ल
दैनिक भास्कर के 'रसरंग' से साभार प्रस्तुत।
1 comment:
प्रेरक रचना! जन्माष्टमी की मंगलकामनायें!
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