Thursday, September 20, 2012

राम कथा का नहीं है अंत ; वेदों की महिमा अनंत


-डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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जन मानस में लोक रक्षक श्री राम का चरित सहज अंकित है लेकिन यह जानना गर्व की बात होगी कि भारत-भूमि के कण-कण में रमे हुए लोकनायक श्रीराम की कथा सिर्फ वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास ने ही नहीं, अनेक अहिन्दी भाषी कवियों ने भी लिखी है. इससे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की लोक जीवन में सर्व व्यापकता प्रमाणित होती है .

हिन्दी के आरंभिक रूप प्राकृत के बाद की भाषाएँ अपभ्रंश कहलाईं. इसके प्रमुख कवि स्वयंभू ने जैन मत के प्रवक्ता होकर भी रामकथा पर आधारित 'पउम चरिउ' जैसी बारह हज़ार पदों वाली कृति की रचना की। लगभग सातवीं शताब्दी में असमिया साहित्य के प्रथम काल के सबसे बड़े कवि माधव कंदलि ने वाल्मीकि रामायण का सरल अनुवाद असमिया छंद में किया। शंकरदेव ने 'रामविजय' नामक नाटक की भी रचना की। उड़िया-साहित्य के प्रथम प्रतिनिधि कवि सारलादास ने 'विलंका रामायण' की रचना की। अर्जुनदास ने 'राम विभा' नाम से रामोपाख्यान प्रस्तुत किया। परंतु, कवि बलरामदास द्वारा रचित रामायण उड़ीसा का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ माना जाता है. इसके बाद १९वीं शती में आधुनिक युग में फकीर मोहन सेनापति ने 'रामायण' का पद्यानुवाद किया.

एक अत्यंत प्रसिद्ध कन्नड़ कवि नागचंद्र ने भी रामायण की रचना की। रामचंद्रचरित पुराण अथवा पंप रामायण कन्नड़ की उपलब्ध रामकथाओं में सबसे प्राचीन है।तत्पश्चात 15वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के बीच नरहरि अथवा कुमार वाल्मीकि नामक एक कवि ने वाल्मीकि रामायण के आधार पर तोरवे रामायण की रचना की। उन्नीसवीं शती में देवचंदर नामक एक जैन कवि ने 'रामकथावतार' लिखकर जैन रामायण की परंपरा को आगे बढ़ाया। सन 1750 से 1900 के मध्य के प्रकाश राम ने रामायण की रचना की। 18वीं शती के अंत में दिवाकर प्रकाश भट्ट ने भी 'कश्मीरी रामायण' की रचना की।14वीं शती में आशासत में गुजराती में रामलीला विषयक पदावली की रचना की। वर्तमान में समूचे गुजरात में १९वीं शताब्दी की गिरधरदास 'रामायण' सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती है.

तमिल भाषा चक्रवर्ती महाकवि कंबन हुए, जिन्होंने 'कंब रामायण' नामक प्रबंध काव्य की रचना की। तेलुगू साहित्य के दूसरे पुराण युग में सबसे पहले रंगनाथ रामायण और फिर भास्कर रामायण की रचना हुई। भास्कर रामायण को तेलुगू का सबसे कलात्मक रामकाव्य माना जाता है। सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी न केवल धर्म गुरु थे वरन वे एक महान संत, योद्धा और कवि भी थे। उनके द्वारा रचे गए कुल 11 ग्रंथों में से एक 'रामावतार' को गोविंद रामायण कहा जाता है। पंजाबी भाषा की यह रचना महान है. तुलसीदास से एक शताब्दी पूर्व बंगला के संत कवि पंडित कृत्तिवास ओझा ने 'रामायण पांचाली' नामक रामायण की रचना की।

महाराष्ट्र में संत एकनाथ गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे। उन्होंने काशी में तुलसीदास जी से भेंट की थी। उन्होंने 'भावार्थ रामायण' की रचना की थी। चौदहवीं शताब्दी में 'रामायण' के युद्ध कांड की कथा के आधार पर प्राचीन तिरुवनांकोर के राजा ने रामचरित नामक काव्य ग्रंथ की रचना की। इसे मलयालम भाषा का प्रथम काव्य ग्रंथ माना जाता है। अहिंदी भाषी रामकाव्य में 'रावणवहो' (रावण वध) महाराष्ट्री प्राकृत भाषा का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसकी रचना कश्मीर के राजा प्रवरसेन द्वितीय ने की थी। प्राकृत साहित्य की इस अनुपम रचना का संस्कृत भाषा में सेतुबंध के नाम से अनुवाद हुआ। १९वीं शताब्दी में कवि भानुभट्ट ने नेपाली भाषा में संपूर्ण रामायण लिखी। इस रामायण का आज नेपाल में वही मान है, जो भारत में तुलसीकृत रामचरितमानस का है। रामायण रचना के ऐसे अन्य अनेक उदाहरण हैं जिनसे ज़ाहिर होता है कि श्री राम का पावन चरित्र सचमुच जन-मन का प्रतिबिम्ब है.

वेदों की महिमा अनन्त
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यह अकस्मात नहीं हैं कि यूनेस्को ने ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है ताकि इन्हें भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा सके। वस्तुतः वेदों में निहित ज्ञान राशि में स्वतः विश्व चेतना के स्वर निहित हैं. उन्हें दुनिया के इतहास के सबसे पुराने साहित्यिक अभिलेख होने का गौरव भी प्राप्त है.

वेदों को विश्व संस्कृति के अभूतपूर्व साहित्यिक दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार किया गया है. वेदों की 28 हज़ार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ विशेष महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची में शामिल किया है।

यूनेस्को ने ऋग्वेद के साथ 37 और दस्तावेज़ों को इस धरोहर सूची में शामिल किया है। इस सूची में दुनिया की पहली फ़ीचर-लेंथ फ़िल्म, स्वीडन के अल्फ़्रेड नोबेल के परिवार के अभिलेख और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले नेता नेल्सन मंडेला पर चलाए गए मुक़दमे के काग़ज़ात भी शामिल हैं। इन दस्तावेज़ों को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की तरफ से बनाए गए 'मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर' में जगह दी गई है।

भारत को विश्व गुरु मानने के पीछे ऐसे ही साक्ष्य अहम भूमिका निभाते हैं. हमारे प्राचीन ग्रंथों में लगभग सभी धर्मों और मान्यताओं के उत्कृष्ट विचारों का समावेश है जिनके मूल में मानवता, बंधुत्व और विश्व शांति का वैभव है. उन्होंने कहा कि वेदों का ज्ञान समग्रता का प्रतीक है. वह स्वयं विश्व विरासत है. दुनिया जिस देश की साहित्यिक-सांस्कृतिक धरोहर को निर्विवाद रूप से सर्वोपरि मान रही है, उसे संजोकर रखना प्रत्येक भारतवासी का सहज कर्तव्य होना चाहिए.

बहरहाल यूनेस्को के रजिस्टर में वेदों के साथ ऐसे दस्तावेज़ों की संख्या 160 से भी ऊपर तक पहुँच गई है। 1992 में दुनिया के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों को संरक्षित करने और विशेषज्ञों को जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसके तहत उन दस्तावेजों को भी शामिल किया जा रहा है जिनका अस्तित्व खतरे में है.

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3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

ज्ञानवर्धक !

Kailash Sharma said...

बहुत ज्ञानवर्धक आलेख..

My Spicy Stories said...

Spicy and Interesting Story of रामचरितमानस Shared by You. Thank You For Sharing.
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