आशा के उजले रंग
प्रेम के जल में घोल कर
भेजें उन्हें बुलावा
होली खेलने का
जिनके खामोश दिन -रात
अब तक व्यथा की आग में
घोलते रहे हैं सिर्फ़ आंसुओं के रंग !
कि फूलों पर कभी नहीं उभरते
जिनके पाँवों के निशान
लेकिन जरूर मिलेंगे
शूलों पर छूटे रक्त के रंग !
कि घुटनों पर सिर रखी जिनकी उदासी को
कभी न मिल सका हँसी का कुमकुम !
पुकारें उन्हें, कि एक बार तो पा सकें वे
इसी धरती पर जन्म लेने का फल
और हमें भी मिल जाए होली पर
सचमुच किसी के हो लेने के कुछ पल !
Thursday, March 20, 2008
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2 comments:
वे आयेंगे न!
डा. जैन जी,
धन्य हैं आप, जिन्होंने कम से कम खामोशी की भाषा को समझा तो, वरना आज की दुनिया के नक्कारखाने में बिना--मतलब के तूती की भी आवाज नही गूंजती.
आशा है की इस होली पर आपके तैयार रंग किसी के लिए आशा का दीप अवश्य जला कर होली को उनके लिए दीपव्वाली भी बनाएगा..
इसी शुभेक्षाओं के साथ
आपका
चंद्र मोहन गुप्ता
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