डॉ. साहब, आप की काव्य का रसास्वादन करता रहा हूँ। हो सकता है कभी टिप्पणी भी की हो। आप का मेरे नीरस ब्लॉग पर आना अच्छा लगा। आप की कविताओं में
जैसे धरती पर क्यारी के लिए .......... एक दूसरे को जगह देने की परम्परा... और......
वक्त की खामोशियों को तोड़कर आगे बढो अपने गम ,अपनी खुशी को छोड़कर आगे बढो जिन्दगी को इस तरह जीने की आदत डाल लो हर नदी की धार को तुम मोड़कर आगे बढो .... मुझे बहुत पसंद हैं। खास कर इन मूल्यों की समाज को बहुत आवश्यकता है। आगे बढ़ाते रहें।
4 comments:
vaah, vaaaah.
जियो तो इसे, कि सारा जहाँ तुम्हारा है
मरो तो यूँ, कि जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं
डॉ. साहब, आप की काव्य का रसास्वादन करता रहा हूँ। हो सकता है कभी टिप्पणी भी की हो। आप का मेरे नीरस ब्लॉग पर आना अच्छा लगा। आप की कविताओं में
जैसे धरती पर क्यारी के लिए
..........
एक दूसरे को
जगह देने की परम्परा...
और......
वक्त की खामोशियों को तोड़कर आगे बढो
अपने गम ,अपनी खुशी को छोड़कर आगे बढो
जिन्दगी को इस तरह जीने की आदत डाल लो
हर नदी की धार को तुम मोड़कर आगे बढो
.... मुझे बहुत पसंद हैं। खास कर इन मूल्यों की समाज को बहुत आवश्यकता है। आगे बढ़ाते रहें।
सही!
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