Thursday, March 27, 2008

बिटिया मेरी !

न जाने कहाँ खो गयी
बिटिया मेरी
तीन साल की उम्र से.
वो मेरी आँखों का नूर
चली गयी है मुझसे कितनी दूर
कोई पता हो तो बता दें
इंसानियत का क़र्ज़ चुका दें
वो मेरे घर की
सबसे प्यारी शहजादी है
मेरा नाम भारत
और उसका नाम आजादी है.

4 comments:

राज भाटिय़ा said...

वाह चन्दर कुमार जी, कया शव्द हे कविता के,यह तो हम सब की हे.चलो सब मिल कर ढुढे.धन्यवाद

अजित वडनेरकर said...

बहुत बढ़िया डॉक्टर साहेब । है तो पीड़ा पर शब्दों में ढल कर कविता बन गई। इस कविता पर कहता हूं कि आनंद आया, पीड़ा पर नहीं !

Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही भाई साहब बहुत सही!!

पारुल "पुखराज" said...

vaah!