Tuesday, April 1, 2008

ताज झूठ के सर पर देखो !

किस्मत का ये चक्कर देखो
चांदनी घर से बेघर देखो

सड़कों पर बिखरा उजियारा
और अँधेरा घर पर देखो

सौ-सौ आंसू बहा रहे हैं
शिलान्यास के पत्थर देखो

बाबू अफसर सभी नदारद
ऐसा भी तुम दफ्तर देखो

आज के बच्चों के हाथों में
कारतूस और खंज़र देखो

सच का चेहरा उतरा -उतरा
ताज झूठ के सर पर देखो .

5 comments:

राज भाटिय़ा said...

सच का चेहरा उतरा -उतरा
ताज झूठ के सर पर देखो .
बहुत खुब, सच यह सब देख कर हेरान ओर प्रेशान हे,लेकिन कया करे.

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर!

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

bahut khoob!

Malay M. said...

Bahut sunder likha hai Jain saheb ... aaj charon or yahi sthiti dikhai de rahi hai ... araajakataa , kaamchori aur phir seenajori , sach ki matiameti ... bilkul satyavachan !!

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया है भाई. लेकिन सुबह सुबह आईना दिखाने पर क्यों आमादा हैं ? बहरहाल अच्छी रचना के लिए आभार.