कटे हुए जीने से बोलो जग में जुड़ना कैसे होगा ?
कटे हुए हों पंख अगर तो नभ में उड़ना कैसे होगा ?
दूरी से दुनियादारी में डट कर जीना नामुमकिन है,
कटे हुए सबसे मिलने के पथ पर मुड़ना कैसे होगा ?
Monday, March 31, 2008
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4 comments:
न्योतने से काफिले बनते नहीं
गर बन गए तो दूर तक चलते नहीं
सही है डॉक्टर साहेब, अच्छी बात है।
कटे हुए सबसे मिलने के पथ पर मुड़ना कैसे होगा ?
कया बात हे..
वाह!
ख़त कबूतर किस तरह पहुँचाये वामे यार पर
पर कतरने को लगीं हों कैंचियाँ दीवार पर
ख़त कबूतर इस तरह पहुंचाय वामे यार पर
ख़त का मजमून हो परों पर,पर कटें दीवार पर!
बहुत सुंदर डाक्टर साहेब
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