Friday, April 4, 2008

जिन्दगी हमने गुजारी शान से .

बच गए खुदगर्ज़ लोगों के किसी एहसान से
चार दिन की जिन्दगी हमने गुजारी शान से

अक्लमन्दों में रहो तो अक्लमन्दों की तरह
और नादानों में रहना हो रहो नादान से

वो जो कल था और अपना भी नहीं था दोस्तों
आज को लेकिन सजा लो एक नई पहचान से

सिर्फ़ बातों से संवरती तो नहीं है जिन्दगी
इल्मो -हिकमत से निखरती है निराली शान से

दिल जलाओगे तो होगी जिन्दगी में रौशनी
इस ज़माने का तकाज़ा है यही इंसान से

दोस्तों रोते रहे तो कुछ न पाओगे यहाँ
जिन्दगी खिलती है लेकिन गीत से गान से

3 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत अच्छा है भाई.
बच गए खुदगर्ज़ लोगों के किसी एहसान से
चार दिन की जिन्दगी हमने गुजारी शान से

अच्छा ही हुआ सबा ने उड़ा दी ख़ाक मेरी
किसी का सर पे तो एहसान ऐ ज़मीं ! न लिया
(याद नहीं किसका है ... शायद कुछ शब्द भी गड़बड़ हों)

पारुल "पुखराज" said...

आपको पढ़ना--बहुत कुछ सीखने जैसा है--आभार

Sanjeet Tripathi said...

हर लाईन बहुत गहरी है साहेब!!
शानदार!