अब बदल जाओ दर्पण
ये इक्कीसवीं सदी है
देखो सब बदल गए
और तुम ...... दर्पण ही रह गए !
हर चीज़ को
जस का तस दिखाने की
आदत से कब बाज आओगे ?
आदमी की तरह क्या
सच को नहीं छुपाओगे ?
कुछ तो छुपाने की कला सीखो
अरे जो है उसे मारो गोली
जो नहीं दिखती वही सूरत है भोली
इसलिए ना-कुछ को कुछ बनाकर दिखाओ
दर्प न करो दर्पण जरा झुक जाओ .....!!!
Wednesday, April 2, 2008
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2 comments:
गज़ब, गज़ब. बहुत बढ़िया है सर. बधाई.
अरे जो है उसे मारो गोली
जो नहीं दिखती वही सूरत है भोली
अरे वाह कया बात हे, बहुत खुब
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