बेहतर जीवन गढ़ी किताब
लेकर सबको बढ़ी किताब।
नापे गहरे सागर को
ऊंची चोटी चढ़ी किताब।
सदा ज्ञान के गहनों में
चुन-चुन मोती जड़ी किताब।
जीवन पथ को रोशन करने
अंधियारों से लड़ी किताब।
दूर सफ़र में संग हमारे
साथ-साथ चल पड़ी किताब।
पथरीली, दुर्गम राहों में
हरियाली बन खड़ी किताब।
छू लेंगे हम चाँद-सितारे
आसमान से बड़ी किताब।
तुलसी,सूर,कबीर को देखो
युग पुरुषों की गढ़ी किताब।
साकार किए हैं सारे सपने
जिसने डटकर पढ़ी किताब।
नेक,सफल इंसान बनाने
सदा आन पर अड़ी किताब।
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सतीश उपाध्याय की कविता साभार प्रस्तुत.
Sunday, June 26, 2011
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2 comments:
तुलसी,सूर,कबीर को देखो
युग पुरुषों की गढ़ी किताब।
bahut badhiya ...
साकार किए हैं सारे सपने , जिसने डटकर पढ़ी किताब।
नेक,सफल इंसान बनाने, सदा आन पर अड़ी किताब।
अद्भुत सच ,Really amazing
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