Monday, April 28, 2008

आँखों से बड़ा हमदर्द नहीं !


आँखों से बड़ा हमदर्द नहीं
हमने दुनिया में देखा है
आँखों-आँखों में हमने तो
पाया जीवन का लेखा है
हम दौड़-भाग में भूल गए
हर आँख का आँसू मोती है
जब एक आँख रोती है तब
दूजी भी दुःख में रोती है !

8 comments:

Alpana Verma said...

Sir ji,
koi kavita nahin nazar aa rahi

kripya dobara post publish karen--

sirf title hai aap ke blog par...

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब
आंखों से बड़ा कोई हमदर्द नहीं...सच है...लेकिन किसकी आंखों से?
नीरज

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अल्पना जी
ध्यानाकर्षण के लिए आभार .
आज त्रुटि रह गई थी .
मैने कविता पोस्ट कर दी है .
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नीरज जी !
आपने तो बड़े संजीदा अंदाज़ में
पोस्ट की चूक की ओर इशारा कर दिया .
हमदर्दी में आपकी आँखों के मुक़ाबिल
कोई और हो ये मुमकिन नहीं.
शुक्रिया.

आपका
चंद्रकुमार

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब
सुबह से चौथी बार आ चुका हूँ आप के ब्लॉग पर अब जा कर तपस्या सफल हुई और आप की खूबसूरत रचना के दीदार हुए. आप जैसा लिखते वो हम जैसों के लिए ईर्षा का विषय हो सकता है. शब्द और भाव का संगम कोई आप से सीखे. वाह.
नीरज

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी,
आपका यह लगाव मुझे
ऋणी बना रहा है.
कद्रदानी बहुत बड़ी बात है.
वह आपसे सीखना चाहिए.
यह आत्मीयता
कितनी मोहक है...... और प्रेरक भी .
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आभार
डा.चंद्रकुमार जैन

Udan Tashtari said...

वाह!!! आँख का यह विश्लेष्ण-अद्भुत कलम है आपकी जनाब. बधाई.

Omnivocal Loser said...

सच ही है साहब
आँखों से बड़ा हमदर्द शायद ही कोई है

बेहद खूबसूरत


http://rohitler.wordpress.com

डॉ .अनुराग said...

likhte rahiye...aapki doosri kavita ka intzaar rahega.