Monday, April 28, 2008

दो मुक्तक .


हर सितारे पर न ये आँखें अटकती हैं
जिसको चाहो उससे हर दूरी खटकती है
रात-दिन उस प्राण प्रिय के दरस पाने को
पुतलियों की नाव सागर में भटकती है.
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रात यह बेशक बहुत काली-कलूटी है
चाँद को पर प्रेयसी लगती अनूठी है
ह्रदय को स्वीकार हो बस है वही सुंदर
और सब मूल्यांकनों की बात झूठी है .

3 comments:

अमिताभ मीत said...

क्या बात है भाई.
"पुतलियों की नाव सागर में भटकती है"
बहुत बढ़िया !

Udan Tashtari said...

बेहतरीन है जनाब!

mehek said...

wah wah bahut khub khas kar pehla.