किसे घटाएँ,किसको जोड़ें
कैसे दुनिया का रुख मोड़ें
जब चलने में हर्ज़ यहाँ है
तुम्हीं बताओ कैसे दौड़े
किसे ले चलें साथ सफर में
और बताओ किसको छोड़ें
धारा के विपरीत खड़े हैं
क्यों हम धाराओं को मोड़ें
मंजिल एक दिन मिल जायेगी
मगर शिकायत करना छोड़ें
सुंदर,मंजिल एक दिन मिल जायेगी मगर शिकायत करना छोड़ें
कितना सहज. कितना सरल. कितना अच्छा.
beautiful !
वाह!
जैन साहेबछोटी बहर की ग़ज़ल कहना कितना मुश्किल काम होता है मैं जानता हूँ और आप ने अपने हुनर से इसे कितना आसान कर दिया है. कमाल है. इतना बढ़िया जब लिखते हो कैसे तुमको पढ़ना छोडें ?नीरज
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5 comments:
सुंदर,
मंजिल एक दिन मिल जायेगी
मगर शिकायत करना छोड़ें
कितना सहज. कितना सरल. कितना अच्छा.
beautiful !
वाह!
जैन साहेब
छोटी बहर की ग़ज़ल कहना कितना मुश्किल काम होता है मैं जानता हूँ और आप ने अपने हुनर से इसे कितना आसान कर दिया है. कमाल है.
इतना बढ़िया जब लिखते हो
कैसे तुमको पढ़ना छोडें ?
नीरज
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