इस तरह फ़ासला नहीं होता
मैं जो तुमसे मिला नहीं होता
ज़ुल्म की हद अगर नहीं होती
सब्र भी खोखला नहीं होता
पीठ में घोंपते न तुम खंजर
क़त्ल का मामला नहीं होता
आँखों-आँखों में बात कर लेते
रंज़ या फिर गिला नहीं होता
ख़त भी गुमनाम लिखा है तुमने
क्या मैं तुमसे मिला नहीं होता
प्यार को वो अगर समझ जाता
मीत से कुछ गिला नहीं होता
देखते तो मुझे सदा देकर
एक क़दम मैं हिला नहीं होता
मैं जो तुमसे मिला नहीं होता
ज़ुल्म की हद अगर नहीं होती
सब्र भी खोखला नहीं होता
पीठ में घोंपते न तुम खंजर
क़त्ल का मामला नहीं होता
आँखों-आँखों में बात कर लेते
रंज़ या फिर गिला नहीं होता
ख़त भी गुमनाम लिखा है तुमने
क्या मैं तुमसे मिला नहीं होता
प्यार को वो अगर समझ जाता
मीत से कुछ गिला नहीं होता
देखते तो मुझे सदा देकर
एक क़दम मैं हिला नहीं होता
3 comments:
bahut khubsurat gazal hai.
आँखों-आँखों में बात कर लेते
रंज़ या फिर गिला नहीं होता
ख़त भी गुमनाम लिखा है तुमने
क्या मैं तुमसे मिला नहीं होता
wah inka to jawab nahi.
बहुत गजब..आनन्द आ गया.
उनके इंतजार में जाने कब से खड़ा हूं उसी मोड़ पर
अब है उन्हें ही रंज, जो गये थे खुद मुझे छोड़े कर
क्या कीजिएगा? दुनियावालों का दस्तूर ही यही है। बहुत प्यारी रचना है आपकी।
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