इंसानों की दुनिया में
और कुछ बँटा न बँटा
आबाद न रह सकी
इंसानियत !
सभ्यता ने बाँट दिया
इन्सान को -
मुल्कों में
संस्कृतियों में
मज़हबों में
सम्प्रदायों में
शिविरों में
कुनबों में
यहाँ तक गली -मोहल्लों
जाति-उपजाति
आग्रहों-पूर्वाग्रहों में !
सिर्फ़ देशी-विदेशी उत्पाद नहीं
भाव बिके,विचार बिके
सहयोग बिका
सेवा बिकी
यहाँ तक स्वप्न भी तो बिकने लगे !
दुनिया एक बाज़ार ही बन गई
मन-मस्तिष्क-ह्रदय
सब कुछ बँट गया,बिक गया !
नई सदी !
हम समझ गए
अब बँटवारा
सिर्फ़ भौगोलिक तथ्य नहीं
मिट्टी,नदी,पर्वत के पार भी
बँट सकती है ये धरती
सच है ....... जो काम
कर नहीं सकती प्रकृति
वह मानव कर
सकता है !
जन्म चाहे उसके हाथ न हो
अपने हाथों मर तो सकता है !!
और कुछ बँटा न बँटा
आबाद न रह सकी
इंसानियत !
सभ्यता ने बाँट दिया
इन्सान को -
मुल्कों में
संस्कृतियों में
मज़हबों में
सम्प्रदायों में
शिविरों में
कुनबों में
यहाँ तक गली -मोहल्लों
जाति-उपजाति
आग्रहों-पूर्वाग्रहों में !
सिर्फ़ देशी-विदेशी उत्पाद नहीं
भाव बिके,विचार बिके
सहयोग बिका
सेवा बिकी
यहाँ तक स्वप्न भी तो बिकने लगे !
दुनिया एक बाज़ार ही बन गई
मन-मस्तिष्क-ह्रदय
सब कुछ बँट गया,बिक गया !
नई सदी !
हम समझ गए
अब बँटवारा
सिर्फ़ भौगोलिक तथ्य नहीं
मिट्टी,नदी,पर्वत के पार भी
बँट सकती है ये धरती
सच है ....... जो काम
कर नहीं सकती प्रकृति
वह मानव कर
सकता है !
जन्म चाहे उसके हाथ न हो
अपने हाथों मर तो सकता है !!
2 comments:
जन्म चाहे उसके हाथ न हो
अपने हाथों मर तो सकता है !!
--क्या बात है!! बहुत खूब.
इंसानियत! ये शब्द तो अब शायद डिक्शनरी से भी बाहर हो गया है।
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