Saturday, May 24, 2008

शायरी.....पसंद मेरी !


अभी आदाबे नज़र आपको कम आते हैं
आईना हाथों से रख दीजिये हम आते हैं
- बासित भोपाली
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एक-एक करके हुए जाते हैं तारे रौशन
मेरी मंज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं
- फैज़
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देखा नहीं किसी को हिक़ारत से आज तक
मुझसे मेरी निगाह की कीमत न पूछिए
- वहसत कलकत्तवी
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न तो इल्मो फ़न की दौलत न अदब से वाकफीयत
वो मुझे परख रहे हैं नहीं जिनका था ठिकाना
- अब्दुस्सलाम कौसर

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

न तो इल्मो फ़न की दौलत न अदब से वाकफीयत
वो मुझे परख रहे हैं नहीं जिनका था ठिकाना

bahut badhiya.....

अमिताभ मीत said...

हर शेर लाजवाब. शुक्रिया.

mehek said...

har sher lajawab bahut badhiya

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब
बहुत खूबसूरत शेर...लेकिन इतने कम क्यों? आप अपने खजाने से और भी मोती लुटाईये ना.
नीरज

Dr. Chandra Kumar Jain said...

धन्यवाद डाक्टर साहब,मीत जी,महक जी .
नीरज जी ! खजाने के मलिक तो आप हैं.
फिर भी दिल की गहराई
और गहराई के मक़ामों को
छूने....झकझोरने वाले
शे'र ज़रूर साझा करता रहूँगा.
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आप सब का शुक्रिया.
चंद्रकुमार

Alpana Verma said...

bahut hi sundar sher hain...wah wah !