ज़िन्दगी के लिए बंदगी चाहिए
है अँधेरा घना रोशनी चाहिए
तुम नहीं हो तो है ज़िन्दगी बेमज़ा
जिस तरह चाँद को चाँदनी चाहिए
सजनी हो तो साजन से क्यों दूर हो
चाँदनी को तो बस चाँद ही चाहिए
लाज की लालिमा आँखों में सपन
आरज़ू को कहो क्या नहीं चाहिए
मैं बताऊँ तुम्हें ज़िन्दगी के लिए
हर क़दम पर नई ताज़गी चाहिए
तू जो भूखा रहे मैं भी खा न सकूँ
आदमी बस रहे आदमी चाहिए
है अँधेरा घना रोशनी चाहिए
तुम नहीं हो तो है ज़िन्दगी बेमज़ा
जिस तरह चाँद को चाँदनी चाहिए
सजनी हो तो साजन से क्यों दूर हो
चाँदनी को तो बस चाँद ही चाहिए
लाज की लालिमा आँखों में सपन
आरज़ू को कहो क्या नहीं चाहिए
मैं बताऊँ तुम्हें ज़िन्दगी के लिए
हर क़दम पर नई ताज़गी चाहिए
तू जो भूखा रहे मैं भी खा न सकूँ
आदमी बस रहे आदमी चाहिए
9 comments:
हिन्दी ब्लागजगत खासकर कविताओं के ब्लागों में आपके आने के बाद वास्तव में नई ताजगी आई है । आपका प्रयास प्रणम्य है ।
जैन साहेब
क्या बात है...एक एक शेर में आनंद आ गया.
काली बदली सी है आप की लेखनी
बारिशों सी ग़ज़ल रोज इक चाहिए
नीरज
बहुत ही सुंदर !
तुम नहीं हो तो है ज़िन्दगी बेमज़ा
जिस तरह चाँद को चांदनी चाहिए
तू जो भूखा रहे मैं भी खा न सकूँ
आदमी बस रहे आदमी चाहिए
बेहतरीन..
***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
बहुत खूब भाई! बेहतरीन.
वाह वाह.
बेहद उम्दा शेर और बेहतरीन गजल.
आभार.
नीरज भइया से सहमत हूँ.
शुक्रिया....आभार....धन्यवाद
आप सब का.
स्नेह बनाए रखिए.
=============
चंद्रकुमार
बहुत बढ़िया...एक-एक शेर लजाब..जीवन के लिए फलसफा लिए हुए.
धन्यवाद शिव जी.
चंद्रकुमार
Post a Comment