Monday, June 2, 2008

नई ताज़गी चाहिए !


ज़िन्दगी के लिए बंदगी चाहिए
है अँधेरा घना रोशनी चाहिए

तुम नहीं हो तो है ज़िन्दगी बेमज़ा
जिस तरह चाँद को चाँदनी चाहिए

सजनी हो तो साजन से क्यों दूर हो
चाँदनी को तो बस चाँद ही चाहिए

लाज की लालिमा आँखों में सपन
आरज़ू को कहो क्या नहीं चाहिए

मैं बताऊँ तुम्हें ज़िन्दगी के लिए
हर क़दम पर नई ताज़गी चाहिए

तू जो भूखा रहे मैं भी खा न सकूँ
आदमी बस रहे आदमी चाहिए

9 comments:

36solutions said...

हिन्दी ब्लागजगत खासकर कविताओं के ब्लागों में आपके आने के बाद वास्तव में नई ताजगी आई है । आपका प्रयास प्रणम्य है ।

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब
क्या बात है...एक एक शेर में आनंद आ गया.
काली बदली सी है आप की लेखनी
बारिशों सी ग़ज़ल रोज इक चाहिए
नीरज

mamta said...

बहुत ही सुंदर !

राजीव रंजन प्रसाद said...

तुम नहीं हो तो है ज़िन्दगी बेमज़ा
जिस तरह चाँद को चांदनी चाहिए

तू जो भूखा रहे मैं भी खा न सकूँ
आदमी बस रहे आदमी चाहिए

बेहतरीन..

***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com

Udan Tashtari said...

बहुत खूब भाई! बेहतरीन.

बालकिशन said...

वाह वाह.
बेहद उम्दा शेर और बेहतरीन गजल.
आभार.
नीरज भइया से सहमत हूँ.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शुक्रिया....आभार....धन्यवाद
आप सब का.
स्नेह बनाए रखिए.
=============
चंद्रकुमार

Shiv said...

बहुत बढ़िया...एक-एक शेर लजाब..जीवन के लिए फलसफा लिए हुए.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

धन्यवाद शिव जी.
चंद्रकुमार