बढिया है डा सहाब -जीवन के बिखरे फूलों कोबना सकूँ एक माला.
धुना जाए यह मनकपास की तरहकि पिरो सकूँ धागों मेंजीवन के बिखरे फूलों कोबना सकूँ एक मालानई अनुभूति की.सच में यही दिल करता है मेरा भी ..बहुत सुंदर लगे यह भाव ..
dil ki baat keh di aapki kavita ne,bahut bahut sundar.
bhut hi sundar rachana.badhai ho.
khubsurat khayaal hain !
बहुत उम्दा.
kitni sundar abhivyakti ki hai!jaane kitno ke dil ki baat kah di aap ne is kavita mein...
बहुत खूब डॉ साहब. एक शेर याद आ गया :मुझ को शाइर न कहो "मीर" की साहब मैं ने दर्द-ओ-गम लाख किए जम'आ तो इक शेर कहा
आपकी अपनी रचनाओं को दाद देता हूं, साथ ही ब्लाग पर महान शायरों को एक जगह पर जिस तरह सहेजा जा रहा है,उस प्रक्रिया को भी चलने दें.
गज़ब का शब्द शिल्प जैन साहेब...जिन्दाबाद....वाह.नीरज
खुले मन से आप सब ने शुभकामनाएँ दीं...आभार.====================चन्द्रकुमार
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11 comments:
बढिया है डा सहाब -
जीवन के बिखरे फूलों को
बना सकूँ एक माला.
धुना जाए यह मन
कपास की तरह
कि पिरो सकूँ धागों में
जीवन के बिखरे फूलों को
बना सकूँ एक माला
नई अनुभूति की.
सच में यही दिल करता है मेरा भी ..बहुत सुंदर लगे यह भाव ..
dil ki baat keh di aapki kavita ne,bahut bahut sundar.
bhut hi sundar rachana.badhai ho.
khubsurat khayaal hain !
बहुत उम्दा.
kitni sundar abhivyakti ki hai!
jaane kitno ke dil ki baat kah di aap ne is kavita mein...
बहुत खूब डॉ साहब.
एक शेर याद आ गया :
मुझ को शाइर न कहो "मीर" की साहब मैं ने
दर्द-ओ-गम लाख किए जम'आ तो इक शेर कहा
आपकी अपनी रचनाओं को दाद देता हूं, साथ ही ब्लाग पर महान शायरों को एक जगह पर जिस तरह सहेजा जा रहा है,उस प्रक्रिया को भी चलने दें.
गज़ब का शब्द शिल्प जैन साहेब...जिन्दाबाद....वाह.
नीरज
खुले मन से आप सब ने
शुभकामनाएँ दीं...आभार.
====================
चन्द्रकुमार
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