Sunday, June 22, 2008

मासूम रातें...ग़मों के सबेरे !


ये ऐसी ज़मीं है जहाँ रहने वाले
बखुद अपने घर का पता पूछते हैं !

ये फकीरी का आलम,ये भूखों के डेरे
ये मासूम रातें, ग़मों के सबेरे
ये बुझते दिए, टिमटिमाते सितारे
अंधेरों से राहे फतह पूछते हैं !

ये फ़ाका परस्ती,ये नफ़रत का साया
यतीमों की हालत पे,तरस किसको आया ?
मज़ारे शहीदों के सिसकते ज़नाज़े
क्यों सूखी महकती लता पूछते हैं !

ये ऐसी ज़मीं है......!
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9 comments:

डॉ .अनुराग said...

ये फकीरी का आलम,ये भूखों के डेरे
ये मासूम रातें ग़मों के सबेरे
ये बुझते दिए टिमटिमाते सितारे
अंधेरों से राहे फतह पूछते हैं !

ये फ़ाका परस्ती,ये नफ़रत का साया
यतीमों की हालत पर तरस किसको आया ?
मज़ारे शहीदों के सिसकते ज़नाज़े
क्यों सूखी महकती लता पूछते है !




shahir shahab ki yaad aa gayi....

Alpana Verma said...

ये ऐसी ज़मीं है जहाँ रहने वाले
बखुद अपने घर का पता पूछते हैं !----

bahut hi umda likhi hai yah kavita--

-is par ek geet yaad aata hai--
rafi sahab ka gaya hua--'Ye duniya agar mil bhi jaye to kya hai??'

Dr.Bhawna Kunwar said...

बहुत ही खूबसूरत लफ़्ज़ हैं बधाई स्वीकारें...

रंजू भाटिया said...

ये बुझते दिए टिमटिमाते सितारे
अंधेरों से राहे फतह पूछते हैं !

बहुत खूब लिखा है आपने

jasvir saurana said...

bhut hi sundar rachana.sundar rachana ke liye badhai.

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रचना, बधाई.

राजीव रंजन प्रसाद said...

बहुत सुन्दर रचना..संग्रहणीय।


"...ये दुनियाँ अगर मिट भी जाये तो क्या हो" गीत की याद ताजा हो गयी।


गंभीर और उम्दा रचना के लिये बधाई स्वीकारें।


***राजीव रंजन प्रसाद

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शुक्रिया....शुक्रिया....शुक्रिया !
आप सब का.
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डा.चन्द्रकुमार जैन

Luna said...

Achei maravilhoso o seu blog, embora não tenha entendido nada. Gostei das figuras! Beijos!