Sunday, June 29, 2008

गीत ख़ुशी से गा लेना....!


तुम अपने एहसास के दामन को रंगीन बना लेना
जब भी आए याद हमारी,गीत खुशी से गा लेना

जिन गलियों में कभी अकेले मिलकर बिछुड़ गए थे हम
उन गलियों में फिर आ जाना हमको गले लगा लेना

हमने अपने लिए आज तक कहाँ कभी कुछ भी माँगा
तुम हमसे कुछ चाह रहे हो चुपके से बतला देना

ज़र्रा-ज़र्रा बनकर हीरा चमक उठेगा तय मानो
तुम सज धज के बज़्म में आना एक झलक दिखला देना

दिल भी घायल,रूह भी ज़ख्मी, उम्मीदें भी टूट चुकीं
हमदर्दी की ओढ़ के चादर हमसे नज़र मिला लेना

जीवन खुली किताब हमारी और सबक इसके सच्चे
सीख अगर कुछ मिल जाए तो दिल में उसे बसा लेना
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7 comments:

अमिताभ मीत said...

ज़र्रा-ज़र्रा बनकर हीरा चमक उठेगा तय मानो
तुम सज धज के बज़्म में आना एक झलक दिखला देना
अच्छा है भाई.

Advocate Rashmi saurana said...

जिन गलियों में कभी अकेले मिलकर बिछुड़ गए थे हम
उन गलियों में फिर आ जाना हमको गले लगा लेना
bhut sundar. badhai ho. or accha likhne ke liye shubhakamnaye.

मीनाक्षी said...

बहुत खूब... आप की लेखनी प्रभावशाली है. बहुत कुछ सिखा जाती है.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया. बधाई.

अजित वडनेरकर said...

बहुत सुंदर डॉक्टर साहेब ....

pallavi trivedi said...

achcha likha hai...sundar .

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मीत जी
रश्मि जी
मीनाक्षी जी
समीर साहब
अजित जी
पल्लवी जी.
आपका आभार अंतर्मन से !
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चन्द्रकुमार