Saturday, July 12, 2008

दौड़ रहा बाहर पर भीतर है हीन...!


दौड़ रहा बाहर पर भीतर है हीन

दंभ आसमां पर है लेकिन तू दीन

सबसे आगे रहने में है मशगूल

सुन भाई जाए न सारा सुख छीन

माना कि सबको है अपनी ही फिक्र

पर तू मत इतना हो अपने में लीन

सुन तो तू मिट्टी की, फूलों की भाषा

जल में क्यों प्यासी है सोच जरा मीन

सुख का हर पल जी ले हँसकर तू मीत

दुःख की रातों से तू मत हो ग़मगीन

सीमा हो धुंधली तब तय है तुम मानो

किरणों की होती है बारिश रंगीन.

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11 comments:

समयचक्र said...

माना कि सबको है अपनी ही फिक्र
पर तू मत इतना हो अपने में लीन
कुछ तो सुन मिट्टी की,फूलों की भाषा
जल में क्यों प्यासी है सोच जरा मीन.

Badi joradaar sashakt Abhivyakti ke liye abhaar . bahut sundar.

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!! वाह!!

राजीव रंजन प्रसाद said...

आपकी रचनायें पढना एक अनुभव है...


***राजीव रंजन प्रसाद

Dr. Chandra Kumar Jain said...

महेंद्र जी
समीर साहब
भाई राजीव जी
आपका आभार
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डा. चन्द्रकुमार जैन

pallavi trivedi said...

माना कि सबको है अपनी ही फिक्र
पर तू मत इतना हो अपने में लीन
bahut badhiya...waah

Prabhakar Pandey said...

डाक्टर साहब, सादर नमस्कार।

आपकी रचनाएँ हृदय को छूटी हैं। ऐसी ही रचनाएँ हिन्दी साहित्य को साहित्य जगत के सूर्य के रूप में प्रतिस्थापित करती है। आपकी शैली की सहजता और शब्दों की प्रयुक्तता पाठक को न केवल बाँधे रहती है अपितु उसे चिंतन-मनन के लिए भी प्रेरित करती है।
साधुवाद; हृदयाकर्षित, अतिरंजित, सटीक और शैलीबद्ध रचनाओं के लिए।
आपकी टिप्पणियाँ एक अलौकिक गुरु की भाँति मार्गदर्शन और लेखन पथ पर आगे बढ़ने के लिए सदा प्रेरित करती रहती हैं।
आशा है कि भविष्य में भी सदा आपकी टिप्पणियाँ रूपी आशिर्वाद मिलता रहेगा।
सादर नमस्कार।

अंगूठा छाप said...

क्या बात है! डाॅक्साब आपने बहुत सुंदर व सटीक लिखा है...

बधाई स्वीकारें...

बहुत बहुत बधाई...

Unknown said...

aap bahut achcha likhate hain badhai

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शुक्रिया आप सब का.
प्रभाकर जी,
आप सृजन कर्म में
मौलिक बने रहिए.
बड़ी सम्भावना देख रहा हूँ.
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शुभकामनाएँ
डा.चन्द्रकुमार जैन

vipinkizindagi said...

बेहतरीन , आप बहुत अच्छा लिखते है
मैं आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया आकर अच्छा लगा,
मेंरा ब्लॉग भी देखे
मैं भी ग़ज़ले और कविता ए लिखता हूँ

Dr. Chandra Kumar Jain said...

धन्यवाद विपिन.
ब्लॉग देखा,
अच्छा लिख रहे हैं.
शुभकामनाएँ.
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डा.चन्द्रकुमार जैन