दौड़ रहा बाहर पर भीतर है हीन
दंभ आसमां पर है लेकिन तू दीन
सबसे आगे रहने में है मशगूल
सुन भाई जाए न सारा सुख छीन
माना कि सबको है अपनी ही फिक्र
पर तू मत इतना हो अपने में लीन
सुन तो तू मिट्टी की, फूलों की भाषा
जल में क्यों प्यासी है सोच जरा मीन
सुख का हर पल जी ले हँसकर तू मीत
दुःख की रातों से तू मत हो ग़मगीन
सीमा हो धुंधली तब तय है तुम मानो
किरणों की होती है बारिश रंगीन.
=========================
11 comments:
माना कि सबको है अपनी ही फिक्र
पर तू मत इतना हो अपने में लीन
कुछ तो सुन मिट्टी की,फूलों की भाषा
जल में क्यों प्यासी है सोच जरा मीन.
Badi joradaar sashakt Abhivyakti ke liye abhaar . bahut sundar.
बेहतरीन!! वाह!!
आपकी रचनायें पढना एक अनुभव है...
***राजीव रंजन प्रसाद
महेंद्र जी
समीर साहब
भाई राजीव जी
आपका आभार
==============
डा. चन्द्रकुमार जैन
माना कि सबको है अपनी ही फिक्र
पर तू मत इतना हो अपने में लीन
bahut badhiya...waah
डाक्टर साहब, सादर नमस्कार।
आपकी रचनाएँ हृदय को छूटी हैं। ऐसी ही रचनाएँ हिन्दी साहित्य को साहित्य जगत के सूर्य के रूप में प्रतिस्थापित करती है। आपकी शैली की सहजता और शब्दों की प्रयुक्तता पाठक को न केवल बाँधे रहती है अपितु उसे चिंतन-मनन के लिए भी प्रेरित करती है।
साधुवाद; हृदयाकर्षित, अतिरंजित, सटीक और शैलीबद्ध रचनाओं के लिए।
आपकी टिप्पणियाँ एक अलौकिक गुरु की भाँति मार्गदर्शन और लेखन पथ पर आगे बढ़ने के लिए सदा प्रेरित करती रहती हैं।
आशा है कि भविष्य में भी सदा आपकी टिप्पणियाँ रूपी आशिर्वाद मिलता रहेगा।
सादर नमस्कार।
क्या बात है! डाॅक्साब आपने बहुत सुंदर व सटीक लिखा है...
बधाई स्वीकारें...
बहुत बहुत बधाई...
aap bahut achcha likhate hain badhai
शुक्रिया आप सब का.
प्रभाकर जी,
आप सृजन कर्म में
मौलिक बने रहिए.
बड़ी सम्भावना देख रहा हूँ.
=====================
शुभकामनाएँ
डा.चन्द्रकुमार जैन
बेहतरीन , आप बहुत अच्छा लिखते है
मैं आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया आकर अच्छा लगा,
मेंरा ब्लॉग भी देखे
मैं भी ग़ज़ले और कविता ए लिखता हूँ
धन्यवाद विपिन.
ब्लॉग देखा,
अच्छा लिख रहे हैं.
शुभकामनाएँ.
===============
डा.चन्द्रकुमार जैन
Post a Comment