कल मैं वैसा ही था, जैसा आज हूँ
आज मैं वैसा ही हूँ, जैसा मैं हूँ
कल मैं वैसा ही रहूँगा,जैसा मैं आज हूँ
मेरे पहले और आख़िरी प्रभाव में
नहीं देख पाओगे तुम फ़र्क
क्योंकि मैं आरम्भ और अंत के बीच
राह के काँटे चुन रहा हूँ
बाद के काफ़िलों के लिए
सफर की आसानी बुन रहा हूँ
सब के बीच
अकेला रहना मेरी सल्तनत है
अकेला होकर भी सब का होना
मेरी फ़ितरत है
जो है उसे मैं वैसा ही जीना चाहता हूँ
रस जीवन का मैं भरपूर पीना चाहता हूँ.
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Thursday, July 17, 2008
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6 comments:
bahut khuub..
सुन्दर बात लिखी है आपने
बहुत बढिया.
bahut khoob....
क्योंकि मैं आरम्भ और अंत के बीच
राह के काँटे चुन रहा हूँ
बाद के काफ़िलों के लिए
सफर की आसानी बुन रहा हूँ
अच्छी रचना है
आभार आप सब का.
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डा.चन्द्रकुमार जैन
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