टीप : यह कविता मैंने
१७ जुलाई १९७९ को लिखी थी।
मेरी पहली प्रकाशित रचना।
तब मैं मात्र १९ बरस का था।
पढ़कर क्या सोचते हैं आप ?
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चीखती है लेखनी जब
वेदना और आह सुनकर
लोग कहते हैं कि मैं अब
गीत लिखने लग गया हूँ
अश्क आँखों से बहे
और होंठ मेरे खुल गए तो
लोग कहते हैं कि मैं अब
गीत गाने लग गया हूँ
देखकर नीरव ये आलम
तार दिल के झनझनाए
लोग कहते हैं कि मैं
संगीत में अब खो गया हूँ
बरसते नयनों को लखकर
बंद कर लीं मैंने पलकें
लोग कहते हैं कि मैं अब
खो गया हूँ, खो गया हूँ !
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12 comments:
नवयुवक का जोश झलक रहा है. खैर, वो तो आपकी रचनाओं में आज भी है. बनाये रखिये. शुभकामनाऐं.
बहुत बढिया जोश से भरी राचना है।अच्छी लगी।
डाक्टर साहब बहुत ही सुन्दर है आपकी पहली रचना । दर्द को बढिया पिरोया है आपने ।
पूत के पाव पालने में ..... आभार ।
डॉ.नरेश चंद्राकर जी से मुलाकात हो तो उन्हें हमारा निवेदन कहें कि हम डॉ.खूबचंद बघेल जी द्वारा छत्तीसगढी भाषा में लिखे गये भाषण को नेट पर लाना चाहते हैं ।
बहुत कुछ कहती है आपकी पहली रचना .अच्छी लगी बहुत
आप की पहली प्रकाशित रचना सुंदर है। पहली जैसी ही।
क्या बात है...जैन साहेब क्या बात है...जो तेवर आप के १९ वर्ष की उम्र में दिखाई दे रहे हैं वो शायद हम ९१(अगर जिन्दा रहे तो) में भी ना दिखा सकें...इतनी परिपक्व सोच और भाषा पर पकड़....वाह...वा.....हम आप की उम्र में तो इंजीनियरिंग कालेज में उधम मचा रहे थे....कमाल है...अब पता चला की आप इतना सुंदर कैसे लिख पाते हैं...ये सब बचपन के संस्कारों का चमत्कार है....लिखते रहें.
नीरज
wah!
pehli rachna esi hai toh fir
...dooosri ...teesri ...chauthi...
bhi hum padhna chahenge!
badhai!!
आपकी पहली रचना इतनी अच्छी और परिपक्व है,यकीन नहीं होता.
बहुत बढिया । आश्चर्य होता पहली रचना ईतनी सुंदर ?
बधाई ।
पहली रचना .अच्छी लगी
मन से...
गहनतम भाव से
आभार आप सब का.
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डा.चन्द्रकुमार जैन
बहुत सुंदर ...
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