Saturday, July 26, 2008

ये कैसा समझौता....!


चीर हरण सत्ता का
साठ सालों से होता रहा है
और मेरे देश का कृष्ण
कुंभकरण की तरह सोता रहा है
उच्च आसन पर बैठकर इन्द्र
हर दधीचि की अस्थियाँ माँगकर
वज्र बनाते हैं
और दधीचि लोक हित के नाम पर
बार-बार मर जाते हैं
सुना है कि असुर संहारक वज्र धारक ने
असुरों से समझौता कर लिया है
देवता अदालत में मुज़रिम हैं
और उसने चुपचाप
अपना घर भर लिया है।
=========================

4 comments:

vipinkizindagi said...

behatarin likha hai sir,
aap kafi dino se mere blog par nahi aayen,

रंजू भाटिया said...

bahut sahi likha hai aapne

Unknown said...

बहुत अच्छा लिखा है।
मुझे नई थीम मिल गई।
धन्यवाद ।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

धन्यवाद आप सब को.
================
डा.चन्द्रकुमार जैन