Tuesday, July 29, 2008

भगवान आ जाते हैं घर...!


बिन बुलाए भी कभी
मेहमान आ जाते हैं घर
ज्वार के संग भी कभी
जलयान आ जाते हैं घर
घर के राजा मत किसी से
बोल कड़वे बोलना
भिक्षु बनकर भी कभी
भगवान आ जाते हैं घर
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12 comments:

नीरज गोस्वामी said...

भिक्षु बनकर भी कभी
भगवान आ जाते हैं घर
बहुत दिनों बाद नज़र आए आप जैन साहेब....मैं तो आप की राह तक रहा हूँ खोपोली में क्यूँ की भगवन कभी कभी कवि के रूप में भी तो आ जाते हैं.
मेरे बारे में हलकी फुलकी जानकारी के लिए मैंने आप को http://coffeewithkush.blogspot.com/2008/07/blog-post_26.html
पर आने का निमंत्रण दिया था लगता है समयाभाव के कारन आप आ नहीं पाए..थोड़ा वक्त निकलकर जरूर आयीये.

नीरज

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!


दिशाएं

बालकिशन said...

अच्छी सीख.
बहुत ही उम्दा.
आपका जवाब नहीं.

Shiv said...

बहुत बढ़िया..भगवान के भिक्षु बनकर घर आने का प्रसंग सचमुच बहुत अच्छा है.

रंजू भाटिया said...

सुंदर बात कही ..क्या पता किस रूप में मिल जाए भगवान

मीनाक्षी said...

यही तो खासियत है अपनी संस्कृति की... सच कहा आपने किसी भी रूप में ईश मिल जाते हैं.

vipinkizindagi said...

भिक्षु बनकर भी कभी
भगवान आ जाते हैं घर

बहुत अच्छा लिखा है...

Abhishek Ojha said...

'भिक्षु बनकर भी कभी
भगवान आ जाते हैं घर'

बहुत अच्छी सीख !

Unknown said...

बहुत अच्छा ।

Udan Tashtari said...

सटीक..बहुत उम्दा...वाह!

अमिताभ मीत said...

भिक्षु बनकर भी कभी
भगवान आ जाते हैं घर


सही है !!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शब्द नहीं सूझ रहे...
कैसे अदा करुँ शुक्रिया ?
आप सब का स्नेह मेरी
सृजन-संपदा ही है.
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डा.चन्द्रकुमार जैन