अरमान के सब संगी-साथी
जब वक़्त पड़ा तब कोई नहीं
मतलब के हैं सब लोग यहाँ
दुनिया में किसी का कोई नहीं
जब बारी आई जाने की
और डेरा किया मसानों में
तब जाने वाले लाख मिले
पर जलने वाला कोई नहीं
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Thursday, July 31, 2008
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10 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति।
मतलब के हैं सब लोग यहाँ
दुनिया में किसी का कोई नहीं
बहुत अच्छा लिखा है
गजब की सच्चाई है आप की इन चाँद पंक्तियों में.
एक गहरा दर्द भी छुपा है.
'तब जाने वाले लाख मिले
पर जलने वाला कोई नहीं'
सच है !
एक कड़वी सच्चाई का काव्यात्मक प्रस्तुतीकरण....याने कुनीन की गोली रसगुल्ले के साथ...बहुत बढ़िया जैन साहेब...आप का भी जवाब नहीं.
नीरज
सच्चाई को कविता में ढाल देना अद्भुत बात है. फिर चाहे सच्चाई कड़वी ही क्यों न हो. बहुत सुंदर लगी आपकी कविता.
जब बारी आई जाने की
और डेरा किया मसानों में
तब जाने वाले लाख मिले
पर जलने वाला कोई नहीं
सच है !
वाह ! संत कबीर की याद दिला दी आपने !
बहुत सुन्दत अभिव्यक्ति, जैन साहब. सच है इसलिए कड़वा है.
आभार आप सब का.
चन्द्रकुमार
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