Tuesday, August 19, 2008

भार....बेकार !

मेरे गाँव का राजकुमार
प्रतिभाशाली और होनहार
ज़वानी की दहलीज़ पर
क़दम रखते ही
बूढ़े माँ-बाप पर
भार हो गया है
बी.ए.क्या कर लिया
बेकार हो गया है
उस पर न किसी का भरोसा
न उसे किसी पर विश्वास है
अगर कुछ है तो बस उसे
अपनी ज़मीन की तलाश है.
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9 comments:

Shambhu Choudhary said...

बहुत सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारें! - शम्भु चौधरी
'कथा-व्यथा' को भी रचना भेंजे।- शम्भु चौधरी, कोलकाता।
http://kathavyatha.blogspot.com/

रंजू भाटिया said...

सही कहा आपने ...

डॉ .अनुराग said...

bhav bahut achhe hai..

राजीव रंजन प्रसाद said...

उस पर न किसी का भरोसा
न उसे किसी पर विश्वास है
अगर कुछ है तो बस
अपनी ज़मीन की तलाश है.

वाह!!! बिलकुल सच..


***राजीव रंजन प्रसाद

Dr. Chandra Kumar Jain said...

ई-हिन्दी साहित्य सभा
रंजू जी
डॉ.अनुराग साहब
राजीव जी
आपकी यहाँ दस्तक
और मूल्यवान टिप्पणी के लिए
आभार मन से.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शम्भू जी,
आप ब्लॉग पर पधारे
बहुत अच्छा लगा.
उससे अधिक प्रसन्नता
इस बात की है कि आपके महत् योगदान
और कर्म-क्षेत्र के उद्देश्य की जानकारी मिली.
आपके ब्लॉग-लेखन से गुज़रकर फिर कभी अपना
मंतव्य संप्रेषित करूंगा....मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Udan Tashtari said...

सटीक..वाह!

Abhishek Ojha said...

मेरे गाँव वाले राजकुमार का भी यही हाल है :(

Dr. Chandra Kumar Jain said...

समीर साहब और
अभिषेक भाई
शुक्रिया आपका.
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चन्द्रकुमार