Monday, August 25, 2008

हर पल जिएँ यह ज़िंदगी.

एक पल के बाद
दूसरा पल क्या है ?
हँसने के बाद रोना पड़े
तो आश्चर्य क्या है ?
कली जो खिल रही
चंपा,चमेली बेल में
दूसरे पल टूटकर गिर जाए
तो आश्चर्य क्या है ?
एक पल पहले जिसे
देखा यहाँ हँसते हुए
दूसरे पल रुदन में ढल जाए
तो आश्चर्य क्या है ?
बेहतर है हम सभी
हर पल जिएँ ये ज़िंदगी
पल भर में ये
हाथों से निकल जाए
तो आश्चर्य क्या है ?
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5 comments:

Asha Joglekar said...

jindagi ke phalsafe ko itane kum shabdon men samza diya aapne.

राजीव तनेजा said...

जीना इसी का नाम है..

Smart Indian said...

"पल भर में ये
हाथों से निकल जाए
तो आश्चर्य क्या है ?


बहुत सुंदर! चिर सत्य!

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब...नमस्कार...पिछले कुछ दिनों से जयपुर गया हुआ था...अपने घर और ये प्रण किया था की इन दिनों लैपटॉप को हाथ भी नहीं लगाऊंगा...आज आया और देखा की लैपटॉप ना खोल कर कितनी बड़ी भूल कर बैठा...आप की एक से बढ़कर एक रचनाएँ यहाँ प्रतीक्षा रत मिलीं, जिन्हें बिना रुके पढ़कर अब आप से संपर्क कर रहा हूँ...बेहतरीन रचनाएँ और उतने ही सुंदर चित्र देख पढ़ कर चित प्रसन्न हो गया...कई बार इंसान भावावेश में ग़लत प्रण कर लेता है...अगली बार जयपुर जाने पर ये लैपटॉप ना खोलने जैसा मूर्खतापूर्ण प्रण तो नहीं ही लूँगा.
नीरज

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आशा जी
तनेजा जी
स्मार्ट इंडियन
आपका आभार.
नीरज जी,
आप सच में ऐसा प्रण न किया करें.
'मेमने सी भोली चाहत' का दर्द देकर
इतने दिनों बाद दवा देना, किसी सूरत में
गवारा नहीं हो सकता....खैर अब आप आ गए हैं.
हर मर्ज़ की दवा हाज़िर गयी है...फिर क्या!
आपकी नई पोस्ट के साथ इंतज़ार रहेगा.
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आपका
डॉ.चन्द्रकुमार जैन