Wednesday, August 27, 2008

नाज़ुक-सी नादानी...!

चाँद से सितारों की

कौन सी हरकत अनजानी है

सागर से क्या छुपा है

कि बूँद में कितना पानी है ?

ज़मीन भूलकर तू आसमां में

उड़ न भोले मन

पंछी की तरह ये तेरी

एक नाज़ुक-सी नादानी है

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9 comments:

अमिताभ मीत said...

सही कहते है सर आप.

ज़मीन भूलकर तू आसमां में उड़ न भोले मन
पंछी की तरह ये तेरीएक नाज़ुक-सी नादानी है

शुक्रिया.

शोभा said...

ज़मीन भूलकर तू आसमां में

उड़ न भोले मन

पंछी की तरह ये तेरी

एक नाज़ुक-सी नादानी है

बहुत सुन्दर और सशक्त बात कही है। बधाई।

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर!!!बधाई!

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब...जय हो...साहित्य की जो अविरल रस धार आप के यहाँ बहती हैं उसका जितना भी पान करें मन नहीं भरता...सादे शब्दों से कितनी विलक्षण बात आप आसानी से कह जाते हैं..वाह.
नीरज

डॉ .अनुराग said...

बहुत सुन्दर!!!बधाई!

Manish Kumar said...

dikkat yahi hai ki man sab jaante boojhte bhi yahi nadani karne ko udyat rahta hai.

Abhishek Ojha said...

कमाल का लिखते हैं सर आप !

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब डॉक्टसा...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

शब्द कम पड़ रहे हैं
आप सबके स्नेह का आभार
कैसे व्यक्त करुँ ?.....बस यही कि
इस जुड़ाव का मुरीद हूँ मैं.......
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चन्द्रकुमार