आकाश बड़ा कुछ अधिक दिखेगा
खान-पान-सम्मान मिले
विश्वास बड़ा कुछ अधिक दिखेगा
लेकिन मन के सूनेपन को
सुनने का जब वक़्त नहीं है
कैसे मानूँ जीने का
एहसास बड़ा कुछ अधिक दिखेगा !
=======================
बहुत गहरे एहसास लिए हैं यह आपकी लिखी पंक्तियाँ ..बहुत पसंद आई
लेकिन मन के सूनेपन को सुनने का जब वक़्त नहीं हैकैसे मानूँ जीने का एहसास बड़ा कुछ अधिक दिखेगा !ऐसी पंक्तियाँ कोई आप सा संवेदनशील कवि ही लिख सकता है....बहुत खूब.नीरज
'मन के सूनेपन' को पुकारती आपकी यह कविता थोड़े से शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है। बहुत ख़ूब!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने। सस्नेह
वाकई.... कैसे मानूं..?बढ़िया भाव-चित्र..बधाई.
लेकिन मन के सूनेपन को सुनने का जब वक़्त नहीं हैकैसे मानूँ जीने का एहसास बड़ा कुछ अधिक दिखेगा !क्या बात है. सही है भाई ... बहुत ख़ूब है.
बहुत ही गहरी बात कह दि आप ने कविता के रुप मे धन्यवाद
आप सब को ह्रदय से धन्यवादचन्द्रकुमार.=================
वाह ! बहुत खूब लिखा है आपने !
शुक्रिया सतीश भाई================डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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10 comments:
बहुत गहरे एहसास लिए हैं यह आपकी लिखी पंक्तियाँ ..बहुत पसंद आई
लेकिन मन के सूनेपन को
सुनने का जब वक़्त नहीं है
कैसे मानूँ जीने का
एहसास बड़ा कुछ अधिक दिखेगा !
ऐसी पंक्तियाँ कोई आप सा संवेदनशील कवि ही लिख सकता है....बहुत खूब.
नीरज
'मन के सूनेपन' को पुकारती आपकी यह कविता
थोड़े से शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है। बहुत ख़ूब!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने। सस्नेह
वाकई.... कैसे मानूं..?
बढ़िया भाव-चित्र..
बधाई.
लेकिन मन के सूनेपन को
सुनने का जब वक़्त नहीं है
कैसे मानूँ जीने का
एहसास बड़ा कुछ अधिक दिखेगा !
क्या बात है. सही है भाई ... बहुत ख़ूब है.
बहुत ही गहरी बात कह दि आप ने कविता के रुप मे धन्यवाद
आप सब को ह्रदय से
धन्यवाद
चन्द्रकुमार.
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वाह ! बहुत खूब लिखा है आपने !
शुक्रिया सतीश भाई
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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