Wednesday, September 10, 2008

आँखों के रास्ते से जो दिल में समा गए...!


जो दूसरों की राह में काँटे बिछा गए
क्यों ऐसे लोग फूलों के साए में आ गए

खुशबू से वास्ता न रहा जिनका आज तक
वे लोग क्यों चमन की बहारों में छा गए

उतरे थे ज़ंग में जो बड़े हौसले के साथ
तलवार भी उठा न सके मात खा गए

मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए

बस उनकी याद दिल में कसक बन के रह गई
आँखों के रास्ते से जो दिल में समा गए
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15 comments:

नीरज गोस्वामी said...

जैन साहेब आज दिल आप को गले लगाने को कर रहा है...क्या ग़ज़ल लिखी है भाई....कमाल...हर एक शेर नपा तुला और बेहतरीन....वाह...वा...
नीरज

manvinder bhimber said...

behtreen likha hai....dil ko chu gya hai

Shiv said...

बहुत खूब. शानदार गजल लिखी है आपने. वाह!

Dr. Amar Jyoti said...

'ख़ुशबू से वास्ता न रहा जिनका…'
बहुत ख़ूब!

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुन्दर, हमेशा की तरह।

रंजू भाटिया said...

मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए


सुंदर बेहतरीन कहा

Sanjeet Tripathi said...

डॉ साहेब,
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस गज़ल की हर लाईन बहुत सही है।
जैसे कि

खुशबू से वास्ता न रहा जिनका आज तक
वे लोग क्यों चमन की बहारों में छा गए

बहुत खूब!

संगीता पुरी said...

बस उनकी याद दिल में कसक बन के रह गई
आँखों के रास्ते से जो दिल में समा गए
क्या बात है।

रंजना said...

बहुत बहुत सुंदर,बेहतरीन ग़ज़ल है.एक एक शेर कमाल के हैं.

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है. बधाई.

डॉ .अनुराग said...

मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए

vah vah.....ye sher achha laga.....

Udan Tashtari said...

बस उनकी याद दिल में कसक बन के रह गई
आँखों के रास्ते से जो दिल में समा गए


---बहुत उम्दा, क्या बात है!

आनन्द आ गया.


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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.

राज भाटिय़ा said...

मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए
वाह क्या बात हे, धन्यवाद

Abhishek Ojha said...

हर बार की तरह बेहतरीन...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

सच कहूँ ! शब्द पर्याप्त नहीं,
आपके आभार के लिए.
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चन्द्रकुमार