जो दूसरों की राह में काँटे बिछा गए
क्यों ऐसे लोग फूलों के साए में आ गए
खुशबू से वास्ता न रहा जिनका आज तक
वे लोग क्यों चमन की बहारों में छा गए
क्यों ऐसे लोग फूलों के साए में आ गए
खुशबू से वास्ता न रहा जिनका आज तक
वे लोग क्यों चमन की बहारों में छा गए
उतरे थे ज़ंग में जो बड़े हौसले के साथ
तलवार भी उठा न सके मात खा गए
मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए
बस उनकी याद दिल में कसक बन के रह गई
आँखों के रास्ते से जो दिल में समा गए
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15 comments:
जैन साहेब आज दिल आप को गले लगाने को कर रहा है...क्या ग़ज़ल लिखी है भाई....कमाल...हर एक शेर नपा तुला और बेहतरीन....वाह...वा...
नीरज
behtreen likha hai....dil ko chu gya hai
बहुत खूब. शानदार गजल लिखी है आपने. वाह!
'ख़ुशबू से वास्ता न रहा जिनका…'
बहुत ख़ूब!
सुन्दर, हमेशा की तरह।
मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए
सुंदर बेहतरीन कहा
डॉ साहेब,
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस गज़ल की हर लाईन बहुत सही है।
जैसे कि
खुशबू से वास्ता न रहा जिनका आज तक
वे लोग क्यों चमन की बहारों में छा गए
बहुत खूब!
बस उनकी याद दिल में कसक बन के रह गई
आँखों के रास्ते से जो दिल में समा गए
क्या बात है।
बहुत बहुत सुंदर,बेहतरीन ग़ज़ल है.एक एक शेर कमाल के हैं.
बहुत अच्छा लिखा है. बधाई.
मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए
vah vah.....ye sher achha laga.....
बस उनकी याद दिल में कसक बन के रह गई
आँखों के रास्ते से जो दिल में समा गए
---बहुत उम्दा, क्या बात है!
आनन्द आ गया.
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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
मगरूर थे तो खो गई पहचान हमारी
अच्छा हुआ तुम आईना हमको दिखा गए
वाह क्या बात हे, धन्यवाद
हर बार की तरह बेहतरीन...
सच कहूँ ! शब्द पर्याप्त नहीं,
आपके आभार के लिए.
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चन्द्रकुमार
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