आम आदमी की संवेदना और सपनों को
प्रकट करने वाली रचनाओं के सर्जक
श्री केदारनाथ सिंह समकालीन हिन्दी संसार में
जीवनानुभव को काव्यानुभव में
परिवर्तित कर देने वाले
लोक-राग के विशिष्ट कवि हैं।
पढ़िए केदार जी की दो कविताएँ -
======================
हाथ
===
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए।
मुक्ति
====
मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला
मैं लिखने बैठ गया हूँ
मैं लिखना चाहता हूँ 'पेड़'
यह जानते हुए कि लिखना पेड़ हो जाना है
मैं लिखना चाहता हूँ 'पानी'
'आदमी' 'आदमी' मैं - लिखना चाहता हूँ
एक बच्चे का हाथ
एक स्त्री का चेहरा
मैं पूरी ताक़त के साथ
शब्दों को फेंकना चाहता हूँ आदमी की तरफ़
यह जानते हुए कि आदमी का कुछ नहीं होगा
मैं भरी सड़क पर सुनना चाहता हूँ वह धमाका
जो शब्द और आदमी की टक्कर से पैदा होता है।
यह जानते हुए कि लिखने से कुछ नहीं होगा
मैं लिखना चाहता हूँ।
==============================
Sunday, September 21, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
8 comments:
एक बार फिर केदार जी की कविता पढ़वाने के लिए आभार। सचमुच पूरी ताकत के साथ शब्दों को फेंकते थे केदार जी।
यह जानते हुए कि लिखने से कुछ नहीं होगा
लेकिन मैं फिर भी लिखना चाहता हूं।
बहुत सुन्दर रचना प्रेषित की है।
आभार आपका अच्छी रचना पढने का मौका देने का
केदारनाथ सिंह मेरे भी प्रिय कवियों में हैं। उनकी कविताएं पढ़वाने के लिए आभार।
प्रिय कवि की अच्छी कविताएं पढ़वाने के लिए आभार।
केदारनाथ सिंह की एक कविता 'शहर में रात' स्कूल में पढ़ी थी...उसके बाद आज ही.
आभार इन रचनाओं के लिए.
केदार जी की उम्दा रचनाऐं पढ़वाने का आभार.
आभार आप सब का
================
चन्द्रकुमार
Post a Comment