Monday, October 13, 2008

मैदान है एक खेल का...!

तिल से तेल

पाने की कला सीखो

संकट सभी तुम सहज

झेल जाने की कला सीखो

मैदान है एक खेल का

मित्रों ये सारी ज़िंदगी

इसमें उतर के पाँव

जमाने की कला सीखो

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5 comments:

श्यामल सुमन said...

मैदान है एक खेल का
मित्रों ये सारी ज़िंदगी
इसमें उतर के पाँव
जमाने की कला सीखो

बहुत खूब। वाह। कम शब्द में अच्छी प्रस्तुति। मैं कहना चाहता हूँ कि-

रो कर मैंने हँसना सीखा, गिरकर उठना सीख लिया।
आते जाते हर मुश्किल से, डटकर लडना सीख लिया।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Abhishek Ojha said...

आपकी लाइनों में जीने की सीख तो बखूबी मिलती ही है... इसमें अब कोई संशय नहीं !

36solutions said...

इसमें उतर के पाँव

जमाने की कला सीखो

आभार .......

रंजना said...

शब्दशः सत्य कथन.सुंदर ढंग से आपने कहा,आभार.

RADHIKA said...

बहुत ही अच्छी कविता