Monday, November 10, 2008

इनमें रमे राम....!

मेरे गीतों में तुम देखो
शब्दों के ये दीप जलेंगे।

करुणा से नाता है इनका
और विश्वास सदा संगी है
दूर भ्रमों की दुनिया से ये
इनका सत् भी सतरंगी है

छूकर जरा इन्हें देखो तुम
ये जीने की रीत मिलेंगे।

राजमहल को छोड़ कभी ये
वन में भी जाया करते हैं
और बेर शबरी के खाकर
सच्चा सुख पाया करते हैं

इनमें रमे राम कह दूँ मैं
ये केंवट की प्रीत मिलेंगे।

गीत मेरे दुखियों के आँसू
चुनते हैं अपनी पलकों से
मुस्कानों की नई कहानी
लिखते हैं अपने अश्कों से

पीड़ा का मंथन करते हैं,
पर ख़ुद ये नवनीत मिलेंगे।

15 comments:

युग-विमर्श said...

गीत अच्छा है और प्रभाव भी अच्छा छोड़ता है.

mehek said...

गीत मेरे दुखियों के आँसू
चुनते हैं अपनी पलकों से
मुस्कानों की नई कहानी
लिखते हैं अपने अश्कों से

पीड़ा का मंथन करते हैं,
पर ख़ुद ये नवनीत मिलेंगे।
bahut hi an bhavak rachana,bahut badhai

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छा।

पुनीत ओमर said...

अच्छी कविता.
आखिरी दो पंक्तियों ने छू लिया.

Abhishek Ojha said...

सुंदर और प्रेरक !

दीपक कुमार भानरे said...

सुंदर अभिव्यक्ति . धन्यवाद .

अनुपम अग्रवाल said...

करुना और विश्वास से इनका
सदा सदा का नाता है
सतरंगी है सत्य जो इनका
हमको भी ये भाता है
गा कर जरा इन्हे देखो तुम
ये जीवन की जीत मिलेंगे

नीरज गोस्वामी said...

पीड़ा का मंथन करते हैं....सच कहा आपने...आप के गीत विलक्षण हैं ....जितना पढो आनंद बढ़ता ही चला जाता है...वाह...
नीरज

अनुपम अग्रवाल said...
This comment has been removed by the author.
शोभा said...

वाह बहुत सुन्दर लिखा है।

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया गीत!!

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर लगा आप का यह गीत.
धन्यवाद

रंजना said...

aapkee kavitaon ke liye yahi kah sakti hun.....

करुणा से नाता है इनका
और विश्वास सदा संगी है
दूर भ्रमों की दुनिया से ये
इनका सत् भी सतरंगी है

atisundar manohaari kavya.

sandhyagupta said...

Bahut achcha likha hai aapne.

guptasandhya.blogspot.com

RADHIKA said...

bahut hi sundar kavita likhi hain ,badhai