मेरे गीतों में तुम देखो
शब्दों के ये दीप जलेंगे।
करुणा से नाता है इनका
और विश्वास सदा संगी है
दूर भ्रमों की दुनिया से ये
इनका सत् भी सतरंगी है
छूकर जरा इन्हें देखो तुम
ये जीने की रीत मिलेंगे।
राजमहल को छोड़ कभी ये
वन में भी जाया करते हैं
और बेर शबरी के खाकर
सच्चा सुख पाया करते हैं
इनमें रमे राम कह दूँ मैं
ये केंवट की प्रीत मिलेंगे।
गीत मेरे दुखियों के आँसू
चुनते हैं अपनी पलकों से
मुस्कानों की नई कहानी
लिखते हैं अपने अश्कों से
पीड़ा का मंथन करते हैं,
पर ख़ुद ये नवनीत मिलेंगे।
Monday, November 10, 2008
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15 comments:
गीत अच्छा है और प्रभाव भी अच्छा छोड़ता है.
गीत मेरे दुखियों के आँसू
चुनते हैं अपनी पलकों से
मुस्कानों की नई कहानी
लिखते हैं अपने अश्कों से
पीड़ा का मंथन करते हैं,
पर ख़ुद ये नवनीत मिलेंगे।
bahut hi an bhavak rachana,bahut badhai
बहुत अच्छा।
अच्छी कविता.
आखिरी दो पंक्तियों ने छू लिया.
सुंदर और प्रेरक !
सुंदर अभिव्यक्ति . धन्यवाद .
करुना और विश्वास से इनका
सदा सदा का नाता है
सतरंगी है सत्य जो इनका
हमको भी ये भाता है
गा कर जरा इन्हे देखो तुम
ये जीवन की जीत मिलेंगे
पीड़ा का मंथन करते हैं....सच कहा आपने...आप के गीत विलक्षण हैं ....जितना पढो आनंद बढ़ता ही चला जाता है...वाह...
नीरज
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
बहुत बढ़िया गीत!!
बहुत ही सुन्दर लगा आप का यह गीत.
धन्यवाद
aapkee kavitaon ke liye yahi kah sakti hun.....
करुणा से नाता है इनका
और विश्वास सदा संगी है
दूर भ्रमों की दुनिया से ये
इनका सत् भी सतरंगी है
atisundar manohaari kavya.
Bahut achcha likha hai aapne.
guptasandhya.blogspot.com
bahut hi sundar kavita likhi hain ,badhai
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