Friday, November 14, 2008

बस एक पर उपकार है....!

आभूषण नर देह का
बस एक पर उपकार है
हार को भूषन कहे
उस बुद्धि को धिक्कार है
स्वर्ण की ज़ंजीर बांधे
श्वान फ़िर भी श्वान है
मुक्ति को जो समझ ले
वो ही यहाँ इंसान है।
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6 comments:

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब डाक्टसाब...

Abhishek Ojha said...

सुभाषित !

madan said...

Sir is kavita ki koi detail bata sakte ho kya?

Auther's name
Poem ka name etc

ya puri kavita.....
I need it

Sanjay Dixit said...

स्वर्ण की जंजीर बांधे श्वान फिर भी श्वान है ।
धूल से धूषित करि(गजराज) भी पाता सदा सम्मान है।
ये है असली पंक्तियाँ

Unknown said...

स्वर्ण की जंजीर बाँधे श्वान फिर भी श्वान है। ये मूल कविता आप को पूरी मालूम हो तो मुझे भेज दीजिए आपका उपकार होगा।

Unknown said...

Ye puri kawita aur iske lekhak ke nam ke sath mio jay to apka upkar hoga🙏