Friday, December 5, 2008

थर-थर काँपेगी हर बाती...!

कुछ रह जाएँ,कुछ हट जाएँ

कितना फ़र्क पड़ेगा साथी ?

हटी न गर तंद्रा तो तय है

थर-थर काँपेगी हर बाती !

स्वार्थ-सुखों में लिप्त तंत्र का

अब भी यदि उपचार न हुआ

आज जो है आतंक रहेगा

कल वह बन जायेगा हाथी !

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6 comments:

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सही!! त्वरित उपचार जरुरी है.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही व बढिया रचना है।बधाई।

शोभा said...

अच्छा लिखा है।

श्यामल सुमन said...

लौ थरथरा रही है बस तेल की कमी से।
उसपर हवा के झोंके है दीप को बचाना।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

bijnior district said...

बहुत अच्छी कविता। बधाई

अजित वडनेरकर said...

आतंक का हाथी...
अर्थात
गजेन्द्रोपद्रव !!!!

बहुत खूब...