अहं-ग्रंथि जो काटे मन की
सच्चा नमन वही होता है,
जो करनी का बीज बन सके
सच्चा कथन वही होता है।
कोटि-कोटि आँखों के आँसू
जिनके दो नयनों में छलकें,
जिसका मन जग का दर्पण हो
सच्चा श्रमण वही होता है।।
======================
Monday, December 22, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
10 comments:
बहुत ही बढ़िया
-----------------------
http://prajapativinay.blogspot.com/
भावपूर्ण !
वाह ! वाह ! वाह !
सत्य को कितनी सुन्दरता से कहा है आपने....एकदम मन मुग्ध हो गया.बहुत बहुत सुंदर .
साधुवाद.
श्रमण क्या होता है ? कृपया बताएं .
विवेक जी,
श्रमण का अर्थ होता है साधु.
भारत में ब्राह्मण और श्रमण ये
दो संस्कृतियाँ सुविदित हैं....महावीर
और बुद्ध श्रमण संस्कृति के दो शिखर हैं.
===============================
आप आते रहिये.....अच्छा लगा.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
विनय जी
डॉ.अनुराग
रंजना जी,
आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया.
========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत ख़ूबसूरत रचना !
bahut sundar , bhaavpoorn abhivyakhti ..
specially these lines :::
जिसका मन जग का दर्पण हो
सच्चा श्रमण वही होता है।।
aapko bahut badhai ..
vijay
for some new poems , pls visit my blog : http://poemsofvijay.blogspot.com/
सतीश भाई और विजय जी
आभार आपका.
============
चन्द्रकुमार
अद्भुत गीत है...बोध है...
आपका कायल हूं कि छोटी छोटी पंक्तियों में
सच्ची और प्रबोधनकारी बात
आप कविता में कह डालते हैं
"अहं-ग्रंथि जो काटे मन की
सच्चा नमन वही होता है"
धन्यवाद...
Post a Comment