Monday, January 19, 2009

भूल गए हम जीना भी है...!


मिली हुई दुनिया की दौलत

भूल न जाना माटी है !

हाथ न आई है जो अब तक

दौलत वही लुभाती है !

लेकिन इस खोने-पाने की

होड़-दौड़ भी अद्भुत है,

भूल गए हम जीना भी है

साँस भी आती-जाती है !

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8 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

लेकिन इस खोने-पाने की

होड़-दौड़ भी अद्भुत है,

भूल गए हम जीना भी है

साँस भी आती-जाती है !

kitne suder shabd hai....bahut khoob

निर्मला कपिला said...

हाथ न आई जो अब तक दौलत वहि सुहाती है क्या खूब कहा है सुन्दर्

Udan Tashtari said...

भूल गए हम जीना भी है

साँस भी आती-जाती है !



-बहुत खूब!!

Dr. Amar Jyoti said...

'हाथ न आई जो अब तक…'
बहुत सुन्दर!
'we look before and after,
and pine for what is not...'

रंजना said...

Waah ! Bahut sundar...

Sankshipt shbdon me aap bahut badi badi baaten kah jate hain.

Shiv said...

बहुत सुंदर!
सच है. जीना अब साँस के आने-जाने तक सिमट के रह गया है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की कविताएँ जीवन सिखाती हैं।

Himanshu Pandey said...

"मिली हुई दुनिया की दौलतभूल न जाना माटी है"

यह सच समझा जा सके, काश! बहुत प्यारी-सी कविता.
धन्यवाद.