कुंठित मन को, क्रंदन जग का
कभी सुनाई कैसे देगा !
दूषित तन, जग को पावनता
की ऊँचाई कैसे देगा !
टीस, दर्द आसान नहीं मिलना
जीने वालों को जग में,
विचलित जीवन को सुख-दुःख में,
फ़र्क दिखाई कैसे देगा !
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कभी सुनाई कैसे देगा !
दूषित तन, जग को पावनता
की ऊँचाई कैसे देगा !
टीस, दर्द आसान नहीं मिलना
जीने वालों को जग में,
विचलित जीवन को सुख-दुःख में,
फ़र्क दिखाई कैसे देगा !
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1 comment:
दूषित तन, जग को पावनता
की ऊँचाई कैसे देगा !
सच्ची बात और वो भी इतने कम शब्दों में...ये कमाल आप के ही बस का है...वाह जैन साहेब वाह...
नीरज
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