Wednesday, March 25, 2009

बसंत.


टूटता है मौन
फूलों का
हवाओं का
सुरों का
टूटता है मौन...

टूटती है नींद
वृक्षों की
समय के
नए बीजों की
टूटती है नींद...

टूटती है देह मेरी
टूटता है वादा
पुराना।
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देशबंधु, रायपुर में
श्री राकेश रंजन की रचना...साभार.

8 comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छी रचना है ...

रंजू भाटिया said...

टूटता है मौन ..सुन्दर .अच्छी लगी यह

अजित वडनेरकर said...

अच्छी रचना पढ़वाने का आभार डाक्टसाब...

"अर्श" said...

NAMASKAAR,
BAHOT HI UMDA BAHOT KHUB AB AAPKE LEKHAN KO MAIN ADANA KYA KAHUN... BAHOT BADHAAEE AAPKO


ARSH

mehek said...

bahut sunder

Unknown said...

मौन को तोड़ते हुए आपने बेहद प्रभावशाली प्रस्तुती दी है । कम शब्दों से आपका बंधन जाल बहुत प्रभावित किया

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर अभिव्यक्ति!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

फूलों का, हवाओं का और सुरों का
मौन वास्तव में टूट गया है।
मौन को भंग करने में सबसे अधिक
शब्दों की ही भूमिका रही है।
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आप
और इसे लिखने के लिए रचनाधर्मी
बधाई के पात्र हैं।